Friday, December 30, 2016

                               यह जिंदगी
जिंदगी अजीबोगरीब लगने लगी है
या दुनिया ही  अजीबोगरीब   है
नहीं  मैं ही  अजीबोगरीब हूँ
 रेल की यात्रा भी अजीबोगरीब   है
रेल की केबिन में सभी आयु के लोग
                    नवयुवतियों में होने  लगी टकराहट                     बढ़ गया शोर रेल की केबिन में
बढ़ें बुजर्ग बोले सहज वाणी में
बहन  ऐसी  टकराहट ठीक नहीं
नवयुवती ने टोका तत्काल
कृपया हमसे रिशता ना बनायें
यात्रा में यात्री ही बना रहने दे
मैं मूक देखती ही रह गयी
क्या रिश्तों का नाम छलवा  हैं
या यह रिश्ते  ही अजीबोगरीब हैं .
                                            सुश्री कल्पना लागू